The official logo for the brand - Spiritual Hindu

Spiritual Hindu

DeitiesTemplesDaily PanchangAartiBhajansChalisaAbout UsContact Us

सिया के राम संपुर्ण चौपाई | In Hindi

Video
Audio
Lyrics
Video PlaceholderVideo Play Icon
Language:
Hindi
Icon for share on facebookIcon for share on twitterIcon for share on pinterestIcon for share on whatsapp
Icon for copy
॥॥ *बाल काण्ड*  ॥॥ (0:00- 16:45)

धीरजु मन कीन्हा प्रभु कहुँ चीन्हा रघुपति कृपाँ भगति पाई।
अति निर्मल बानीं अस्तुति ठानी ग्यानगम्य जय रघुराई ॥

मै नारि अपावन प्रभु जग पावन रावन रिपु जन सुखदाई।
राजीव बिलोचन भव भय मोचन पाहि पाहि सरनहिं आई ॥

मुनि श्राप जो दीन्हा अति भल कीन्हा परम अनुग्रह मैं माना।
देखेउँ भरि लोचन हरि भवमोचन इहइ लाभ संकर जाना ॥

बिनती प्रभु मोरी मैं मति भोरी नाथ न मागउँ बर आना।
पद कमल परागा रस अनुरागा मम मन मधुप करै पाना ॥

सहज मनोहर मूरति दोऊ। कोटि काम उपमा लघु सोऊ॥
सरद चंद निंदक मुख नीके। नीरज नयन भावते जी के॥

सिय सोभा नहिं जाइ बखानी। जगदंबिका रूप गुन खानी॥
उपमा सकल मोहि लघु लागीं। प्राकृत नारि अंग अनुरागीं॥

बिस्वामित्र समय सुभ जानी। बोले अति सनेहमय बानी॥
उठहु राम भंजहु भवचापा। मेटहु तात जनक परितापा॥

उर अनुभवति न कहि सक सोऊ। कवन प्रकार कहै कबि कोऊ॥
एहि बिधि रहा जाहि जस भाऊ। तेहिं तस देखेउ कोसलराऊ॥

गुरहि प्रनामु मनहिं मन कीन्हा। अति लाघवँ उठाइ धनु लीन्हा॥
दमकेउ दामिनि जिमि जब लयऊ। पुनि नभ धनु मंडल सम भयऊ॥

सोहत जनु जुग जलज सनाला। ससिहि सभीत देत जयमाला॥
गावहिं छबि अवलोकि सहेली। सियँ जयमाल राम उर मेली॥

राम सीय सुंदर प्रतिछाहीं। जगमगात मनि खंभन माहीं
मनहुँ मदन रति धरि बहु रूपा। देखत राम बिआहु अनूपा॥

नयन नीरु हटि मंगल जानी। परिछनि करहिं मुदित मन रानी॥
बेद बिहित अरु कुल आचारू। कीन्ह भली बिधि सब ब्यवहारू॥

कुअँरु कुअँरि कल भावँरि देहीं। नयन लाभु सब सादर लेहीं॥
जाइ न बरनि मनोहर जोरी। जो उपमा कछु कहौं सो थोरी॥

सीय बिलोकि धीरता भागी। रहे कहावत परम बिरागी॥
लीन्हि रायँ उर लाइ जानकी। मिटी महामरजाद ग्यान की॥

सिय महिमा रघुनायक जानी। हरषे हृदयँ हेतु पहिचानी॥
पितु आगमनु सुनत दोउ भाई। हृदयँ न अति आनंदु अमाई॥

_______________________
॥॥ *अयोध्या काण्ड* ॥॥ (16:45- 41:00)

( देखिं निहाल कीर्ति रघुराई॥ निरखत रामहिं सिया मुसुकाई॥
स्वामी तुम जन-जन के स्वामी॥ संयम सक्षम सकल सुगामी ||

धन्य भई मैं जनकदुलारी । तुम मेरे मैं राम तिहारी ॥ )

हाट बाट घर गलीं अथाई। कहहिं परसपर लोग लोगाई।।
कालि लगन भलि केतिक बारा। पूजिहि बिधि अभिलाषु हमारा।।

बाजहि बाजने बिबिध बिधाना। पुर प्रमोद नहि जाइ बखाना ॥

मैं सिसु प्रभु सनेहँ प्रतिपाला। मंदरु मेरु कि लेहिं मराला॥
गुर पितु मातु न जानउँ काहू। कहउँ सुभाउ नाथ पतिआहू॥

सकइ न बोलि बिकल नरनाहू। सोक जनित उर दारुन दाहू॥
नाइ सीसु पद अति अनुरागा। उठि रघुबीर बिदा तब मागा॥

मैं पुनि समुझि दीखि मन माहीं।
पिय बियोग सम दुखु जग नाहीं॥

सरल सुभाउ राम महतारी। बोली बचन धीर धरि भारी॥
तात जाउँ बलि कीन्हेहु नीका। पितु आयसु सब धरमक टीका॥

जिय बिनु देह नदी बिनु बारी। तैसिअ नाथ पुरुष बिनु नारी॥
नाथ सकल सुख साथ तुम्हारें। सरद बिमल बिधु बदनु निहारें॥

मोहि मग चलत न होइहि हारी। छिनु छिनु चरन सरोज निहारी॥
सबहि भाँति पिय सेवा करिहौं। मारग जनित सकल श्रम हरिहौं॥

लिए सनेह बिकल उर लाई। गै मनि मनहुँ फनिक फिरि पाई॥
रामहि चितइ रहेउ नरनाहू। चला बिलोचन बारि प्रबाहू॥

रघुपति प्रजा प्रेमबस देखी। सदय हृदयँ दुखु भयउ बिसेषी॥
करुनामय रघुनाथ गोसाँई। बेगि पाइअहिं पीर पराई॥

( वन में चौदह वर्ष बिताने । सियाराम चले वचन निभाने ॥
रघुकुल रीत सत्य कर दिखाई । प्राण जाए पर वचन न जाई ॥ )

कहि सप्रेम मृदु बचन सुहाए। बहुबिधि राम लोग समुझाए॥
किए धरम उपदेस घनेरे। लोग प्रेम बस फिरहिं न फेरे॥

मातु सचिव गुर पुर नर नारी। सकल सनेहँ बिकल भए भारी॥
भरतहि कहहिं सराहि सराही। राम प्रेम मूरति तनु आही॥

राम दरस बस सब नर नारी। जनु करि करिनि चले तकि बारी॥
[ बन सिय रामु समुझि मन माहीं। सानुज भरत पयादेहिं जाहीं॥ ]

रामहि चितवत चित्र लिखे से। सकुचत बोलत बचन सिखे से॥
भरत प्रीति नति बिनय बड़ाई। सुनत सुखद बरनत कठिनाई॥

देव एक बिनती सुनि मोरी। उचित होइ तस करब बहोरी॥
तिलक समाजु साजि सबु आना। करिअ सुफल प्रभु जौं मनु माना॥

मिलनि प्रीति किमि जाइ बखानी। कबिकुल अगम करम मन बानी॥
परम प्रेम पूरन दोउ भाई। मन बुधि चित अहमिति बिसराई॥

अब कृपाल जस आयसु होई। करौं सीस धरि सादर सोई॥
सो अवलंब देव मोहि देई। अवधि पारु पावौं जेहि सेई॥

भरत सील गुर सचिव समाजू। सकुच सनेह बिबस रघुराजू॥
प्रभु करि कृपा पाँवरीं दीन्हीं। सादर भरत सीस धरि लीन्हीं ॥

प्रभु पद पदुम बंदि दोउ भाई। चले सीस धरि राम रजाई॥
मुनि तापस बनदेव निहोरी। सब सनमानि बहोरि बहोरी॥

( जय रघु नायक नाम हितकारी ।  सुमिरन तेह सदा सुखकारी ॥
सोवत भाग्य तुरत ही जागे ।सुमिरत राम नाम दुःख भागे ॥

दशरथ के सुत लक्ष्मण रामा । जग जानत हैं तुम्हरे नामा ॥
विश्वामित्र और गुरु वशिष्ठ । ज्ञान ध्यान की दिए प्रतिष्ठा ॥

तार अहिल्या और तड़का मारे ‌। दुष्टों से संतन को बारे ॥
धनुष तोड़ लिए ब्याह जानकी । लाज राखे रघुकुल के मान की ॥

पिता वचन की लाज निभाए । लखन सिया संग वन को आये ॥
दुष्ट दुरात्मा असुर संहारे । ऋषि मुनि जन जन को तारे ॥

राम की शक्ति बनी बैदेही । सिया राम की परम सनेही ॥
लक्ष्मी रूप है जनक दुलारी । नमन करे ये दिशाएं सारी ॥

राम बढावहि वन की शोभा । देखि देखि प्रकृति मन लोभा ॥
चहुँ ओर व्यापत तुम्हरी आभा ‌। राम दे रहे अगडीत लाभा ॥

शक्ति राम की अजय अभय है । राम तिहारी जय जय जय है ॥ )

_______________________
॥॥ *अरण्य-काण्ड* ॥॥ (41:00- 43:52)

सबरी देखि राम गृहँ आए। मुनि के बचन समुझि जियँ भाए॥

सरहिंद लोचन बाहु बिसाला। जटा मुकुट सिर उर बनमाला॥
स्याम गौर सुंदर दोउ भाई। सबरी परी चरन लपटाई॥

पानि जोरि आगें भइ ठाढ़ी। प्रभुहि बिलोकि प्रीति अति बाढ़ी॥
केहि बिधि अस्तुति करौं तुम्हारी। अधम जाति मैं जड़मति भारी॥

( चख चख के फल राम को दीन्ही । प्रेम भक्ति ने सुध-बुध छीन्ही ॥
ऐसो निश्छल प्रेम अपारा । राम पधारे सबरी द्वारा ॥

भाव भरे ये बेर भी जूठे । राम को लगते पावन मीठे ॥
धन्य है सबरी धन्य रघुराई । ऐसो प्रेम जगत में नाई ॥ )

______________________
॥॥ *किष्किंधा-काण्ड* ॥॥ (43:52- 48:08)

प्रभु पहिचानि परेउ गहि चरना। सो सुख उमा जाइ नहिं बरना॥
पुलकित तन मुख आव न बचना। देखत रुचिर बेष कै रचना॥

अस कहि परेउ चरन अकुलाई। निज तनु प्रगटि प्रीति उर छाई॥
तब रघुपति उठाई उर लावा। निज लोचन जल सींचि जुड़ावा॥

सुनु कपि जियँ मानसि जनि ऊना। तैं मम प्रिय लछिमन ते दूना॥
समदरसी मोहि कह सब कोऊ। सेवक प्रिय अनन्य गति सोऊ॥

कहइ रीछपति सुनु हनुमाना। का चुप साधि रहेहु बलवाना॥
पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना॥

कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं॥
राम काज लगि तव अवतारा। सुनतहिं भयउ पर्बताकारा॥

___________________

॥॥ *सुन्दर-काण्ड* ॥॥ (48:08-1:06:06)

जब लगि आवौं सीतहि देखी। होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी॥
यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा । चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा॥

जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा। तासु दून कपि रूप देखावा॥
सत जोजन तेहिं आनन कीन्हा। अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा॥

बिकल होसि तैं कपि कें मारे। तब जानेसु निसिचर संघारे॥
तात मोर अति पुन्य बहूता। देखेउँ नयन राम कर दूता॥

देखि मनहि महुँ कीन्ह प्रनामा। बैठेहिं बीति जात निसि जामा॥
कृस तनु सीस जटा एक बेनी। जपति हृदयँ रघुपति गुन श्रेनी॥

( राम भक्त मैं हूं हनुमाना | सुन माते तेरो पुत्र समाना ॥
करु बखान मैं वो प्रसंगा । जो जानत सिया राम के संगा ॥ )

( जनक ने भेट जो मुद्रि कीन्ही । हर्षित राम ने प्रेमवश लीन्ही ॥
देख निहाल भई वैदेही । पितु सुत प्रेम ये परम सनेही ॥ )

( दर्शन गंगा की कुशलाइ । मैं जानु सिया और रघुराई ॥
दर्शन पाकर धन्य मां गंगा । राम सिया की ये पूजा संगा ॥ )

(मोहित काग ने पगछय कीन्हा । तुरत ही राम ने दंड वो दीन्हा ॥
नेत्रहीन भए दुष्ट वो कागा । सुमिरत राम ही राम वो भागा ॥ )

हरिजन जानि प्रीति अति गाढ़ी। सजल नयन पुलकावलि बाढ़ी॥
बूड़त बिरह जलधि हनुमाना। भयहु तात मो कहुँ जलजाना॥

मातु कुसल प्रभु अनुज समेता। तव दु:ख दुखी सुकृपा निकेता॥
जनि जननी मानह जियँ ऊना। तुम्ह ते प्रेमु राम कें दूना॥

मोरें हृदय परम संदेहा। सुनि कपि प्रगट कीन्हि निज देहा॥
कनक भूधराकार सरीरा। समर भयंकर अतिबल बीरा॥

सीता मन भरोस तब भयऊ। पुनि लघु रूप पवनसुत लयऊ॥

साधु अवग्या कर फलु ऐसा। जरइ नगर अनाथ कर जैसा॥
जारा नगरु निमिष एक माहीं। एक बिभीषन कर गृह नाहीं॥

मातु मोहि दीजे कछु चीन्हा। जैसें रघुनायक मोहि दीन्हा॥
चूड़ामनि उतारि तब दयऊ। हरष समेत पवनसुत लयऊ॥

सुनि सीता दुख प्रभु सुख अयना। भरि आए जल राजिव नयना॥
बचन कायँ मन मम गति जाही। सपनेहुँ बूझिअ बिपति कि ताही॥

चलत मोहि चूड़ामनि दीन्हीं। रघुपति हृदयँ लाइ सोइ लीन्ही॥
नाथ जुगल लोचन भरि बारी। बचन कहे कछु जनककुमारी॥

अस कहि चला बिभीषनु जबहीं। आयू हीन भए सब तबहीं॥
साधु अवग्या तुरत भवानी। कर कल्यान अखिल कै हानी॥

प्रभु पद पंकज नावहिं सीसा। गर्जहिं भालु महाबल कीसा॥
देखी राम सकल कपि सेना। चितइ कृपा करि राजिव नैना॥

राम कृपा बल पाइ कपिंदा। भए पच्छजुत मनहुँ गिरिंदा॥
हरषि राम तब कीन्ह पयाना। सगुन भए सुंदर सुभ नाना॥

(करे विनय रामहि संग लक्ष्मण।  करत विलंब सिंधु क्षण प्रतिपल॥
बीते समय न होत प्रतिक्षा । देंगे राम अब सिंधु को शिक्षा ॥ )

बहुरि राम छबिधाम बिलोकी। रहेउ ठटुकि एकटक पल रोकी॥
भुज प्रलंब कंजारुन लोचन। स्यामल गात प्रनत भय मोचन॥

अस कहि करत दंडवत देखा। तुरत उठे प्रभु हरष बिसेषा॥
दीन बचन सुनि प्रभु मन भावा। भुज बिसाल गहि हृदयँ लगावा॥

________________________
॥॥  *लंका-काण्ड* ॥॥ (1:06:06- 1:37:07)

जे रामेस्वर दरसनु करिहहिं। ते तनु तजि मम लोक सिधरिहहिं॥
जो गंगाजलु आनि चढ़ाइहि। सो साजुज्य मुक्ति नर पाइहि॥

बाँधि सेतु अति सुदृढ़ बनावा। देखि कृपानिधि के मन भावा॥
चली सेन कछु बरनि न जाई। गर्जहिं मर्कट भट समुदाई॥

अस कौतुक बिलोकि द्वौ भाई। बिहँसि चले कृपाल रघुराई॥
सेन सहित उतरे रघुबीरा। कहि न जाइ कपि जूथप भीरा॥

बंदि चरन उर धरि प्रभुताई। अंगद चलेउ सबहि सिरु नाई॥
प्रभु प्रताप उर सहज असंका। रन बाँकुरा बालिसुत बंका॥

साँचेहुँ मैं लबार भुज बीहा। जौं न उपारिउँ तव दस जीहा॥
समुझि राम प्रताप कपि कोपा। सभा माझ पन करि पद रोपा॥

जौं मम चरन सकसि सठ टारी। फिरहिं रामु सीता मैं हारी॥
सुनहु सुभट सब कह दससीसा। पद गहि धरनि पछारहु कीसा॥

इंद्रजीत आदिक बलवाना। हरषि उठे जहँ तहँ भट नाना॥
झपटहिं करि बल बिपुल उपाई। पद न टरइ बैठहिं सिरु नाई॥

( प्रेम प्रतीक तोहे प्रभु मानें । सिया के राम हैं जन जन जाने  ॥
मिथ्या सारी बात पराई । जहां सिया वहीं हैं रघुराई॥

कर न सके जो सहस्र धुरंधर । प्रेम में तोड़ दिए रघुनंदन॥
प्रेम शक्ति है शक्ति अनंता । जाने जनक-सुता भगवन्ता ॥

प्रेम ही था वो मात तुम्हारा । प्रभु ने दुष्टों को संहारा ॥
पंचवटी से असुर भगाई । राम प्रेम से सिया हर्षाई ॥

रैन दिवस जगे सिंधु के तट पर। करते प्रयास राम जो निरन्तर ॥
तेरो प्रेमवश भए कुशलाई । सिंधु लांघ कीए लंक चढ़ाई ॥

हृदय राम हैं श्वास जानकी । चिंता फिर क्यों होत प्राण की ॥
त्याग दो व्याकुलता भ्रम सारे । जन्मा नहीं जो राम को मारे ॥

(भक्त नारायण सुत दसकंधर । युद्ध करत सब भूल के अंतर ॥
चिंतित हनु कैसे तारिणी मारे । जो तेरे वो ही प्रभु हैं हमारे ॥ )

( दिव्य अलौकिक बिखरी माया । होत विलीन तारिणी की काया ॥
तारिणी को तारे प्रभु रामा । मोक्ष प्राप्त कर गया निज धामा ॥ )

( शक्ति लगी मूर्छित भए लक्ष्मण । शोकाकुल भए राम देवगण ॥
व्याकुल राम यूं धीरज खोए । अनुज प्रेम में फूट के रोए ॥ )

( भाई तुम मेरे सखा दुलारे । उठो लखन मेरे प्राण पियारे ॥ )

( सभा बीच में त्रिजटा आई । वैद्य सुषेण का पता बताई ॥

( लंका पहुंच गए बजरंगी । ढूंढे आलय सुषेण वैद्य की ॥
करै निवेदन पवन-कुमारा । वैद्य-राज करो उपकारा ॥ )

( चले वैद्य को भुजा उठाए । वैद्य को उसका धर्म बताए ॥
संजीवनी है एक उपाय । जासे लक्ष्मण प्राण बचाए ॥)

( कार्य असंभव जो कर पाए । सूर्योदय के पूर्व ही लाए ॥
प्राण बचे तब लखन लाल के । तभी संशय मिटै काल के ॥ )

राम चरन सरसिज उर राखी। चला प्रभंजनसुत बल भाषी॥
उहाँ दूत एक मरमु जनावा। रावनु कालनेमि गृह आवा॥
( चले पवनसुत शीष नवाई । राम सभा में आशा छाई ॥ )

(हनु ने कालनेमी संहारा । चले राम नाम उच्चारा॥ )

( चले पवनसुत शीष नवाई । राम सभा में आशा छाई ॥
बीते क्षण-क्षण समय निरंतर । पहुंचे हनुमाना पर्वत पर ॥ )

( देखि हिमालय शोभा माया । हनुमान के समझ न आया॥
करें वनस्पतियां अगुआनी । लकि न पांए कपि संजीवनी ॥ )

( होय विलंब न यह अवसर में। पर्वत उठा लिए नीज कर में ॥
चले द्रोणगिरी भुजा उठाई । धन्य धन्य तेरो भक्ति रघुराई ॥ )

हरषि राम भेंटेउ हनुमाना। अति कृतग्य प्रभु परम सुजाना॥
तुरत बैद तब कीन्ह उपाई। उठि बैठे लछिमन हरषाई॥

हृदयँ लाइ प्रभु भेंटेउ भ्राता। हरषे सकल भालु कपि ब्राता॥
कपि पुनि बैद तहाँ पहुँचावा। जेहि बिधि तबहिं ताहि लइ आवा॥

( । *राम की शक्तिपूजा- \'निराला\'* ।

मातः, दशभुजा, विश्व-ज्योतिः, मैं हूँ आश्रित ॥
हो विद्ध शक्ति से है खल महिषासुर मर्दित॥
जनरंजन-चरण-कमल-तल, धन्य सिंह गज्र्जित ॥
यह, यह मेरा प्रतीक, मातः समझा इंगित ॥
मैं सिंह, इसी भाव से करूँगा अभिनन्दित॥

चक्र से चक्र मन बढ़ता गया ऊर्ध्व निरलस,
कर-जप पूरा कर एक चढाते इन्दीवर,
निज पुरश्चरण इस भाँति रहे हैं पूरा कर।
[चढ़ षष्ठ दिवस आज्ञा पर हुआ समाहित-मन,]
प्रतिजप से खिंच-खिंच होने लगा महाकर्षण,
संचित त्रिकुटी पर ध्यान द्विदल देवी-पद पर,
जप के स्वर लगा काँपने थर-थर-थर अम्बर।
[दो दिन] निःस्पन्द एक आसन पर रहे राम,
अर्पित करते इन्दीवर जपते हुए नाम॥

होगी जय, होगी जय, हे पुरूषोत्तम नवीन॥
कह महाशक्ति राम के वदन में हुई लीन॥  )

सौरज धीरज तेहि रथ चाका। सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका॥
बल बिबेक दम परहित घोरे। छमा कृपा समता रजु जोरे॥

( राजा हो या रंक पियारे ‌। अंत है जाना मुक्ति के द्वारे ॥
विश्व विजेता ज्ञानी रावण । आज धरा पर है मरणासन्न ॥ )

( राम सिया, सिया राम को देखें । प्रेम भाव लिए नयन निरेखे ॥
समझे व्यथा ये अंतरमन की । कब से थी आशा दर्शन की ॥ )

( संयम धैर्य की थी ये परीक्षा । उर नैना करें आज समीक्षा ॥
प्रतीक्षा का है ये परिणामा । आज मिले फिर सिया के रामा ॥ )

_________________________
॥॥  *उत्तर-काण्ड*  ॥॥ (1:37:07- 2:10:54)

( भरत को भाव से राम निहारें । तुम सम भाई कौन पियारे ॥ )

आए भरत संग सब लोगा । कृस तन श्री रघुबीर बियोगा ॥

गहे भरत पुनि प्रभु पद पंकज। नमत जिन्हहि सुर मुनि संकर अज॥

( चौदह वर्ष की ये प्रतीक्षा । तेरो भरत की कठिन परीक्षा ॥
प्रभु तुम अवधराज के स्वामी । अंतरमन सुनो अन्तरयामी ॥ )

( चरण पादुका राम को दीन्हि । हर्षित मन रघु धारण कीन्हि ॥
भाई से भाई का नाता । देवलोक से देखें विधाता ॥ )

अवधपुरी प्रभु आवत जानी। भई सकल सोभा कै खानी॥
बहइ सुहावन त्रिबिध समीरा। भइ सरजू अति निर्मल नीरा॥

प्रभु बिलोकि हरषे पुरबासी। जनित बियोग बिपति सब नासी॥
प्रेमातुर सब लोग निहारी। कौतुक कीन्ह कृपाल खरारी॥

कनक थार आरती उतारहिं। बार बार प्रभु गात निहारहिं॥
सब रघुपति मुख कमल बिलोकहिं। मंगल जानि नयन जल रोकहिं॥

( राम बचन सुनि पुलित कपिवर ।  प्रेम से छलके नैना झर-झर ॥
धन्य हुआ मैं हे रघुराई । भक्ति तुम्हारी मैंने पाई ॥ )

( असमंजस में हैं रघुराई। पीड़ा मन की कही न जाई ॥
चिंता की है मुख पर रेखा । राजधर्म न होए अनदेखा ॥ )

( राम विवश मुख सिया निहारें । क्षमा करो प्रिय दोष हमारे ॥
प्रकट करुं कैसे व्यथा मैं मन की । अंतिम रैन है अपने मिलन की ॥ )

( अंतरमन कैसे लखन बताए ‌। रहि रहि लोचन भरि भरि जाए ॥
सकल सुलक्षणी रानी सीता । है निर्दोष ये सती पुनीता ॥ )

( सम्मुख कैसे होए सिया के । तोड़ दे कैसे वचन विधा के ॥
व्याकुल राम की व्यथा है ऐसी । पुरलोचन है सरिता जैसी ॥ )

( प्रकट करुं कैसे व्यथा मैं मन की । समझे न कछु जनकनंदिनी ॥
बिधना का ये खेल है कैसा । विवश न हो कोई राम के जैसा ॥ )

( राम सिया दुख सहि न पावे। प्रेम व्यथा यह किसको सुनाए ॥
चली जा रही हर्षित वन में । रोवे लक्ष्मण मन ही मन में ॥ )

( केहि कारण यह दंड मिला है । धर्म ने कैसे आज छला है ॥ )

( समय ने कैसा चक्र चलाया । सुत ने पितु पे सश्त्र उठाया ॥
संबंधों से दोनों अपरिचित । भाग्य में जाने क्या है अंकित ॥ )

( विडंबना है युद्ध में आई । विधना ने‌ ऐसी नियति बनाई ॥
प्रेम दुलार के जो‌ अधिकारी । खड़े शत्रु बन राम तिहारी ॥ )

(चारों बहनें हर्षित पुलकित । प्रसन्नता है मुख पर अंकित ॥
देवी समान ये जनक-सुताएं । सिया सखी बन झूला झूलाएं ॥
आनंदित हो लगी झुलाने । मगन भई हैं सारी बहनें ॥ )

( चले रघुराई सिया लियावन । अवधपुरी की शोभा बढ़ाने ॥
राजमहल सूना बिन सीता । बारह वर्ष है युग सम बीता ॥ )

(तिल तिल पग धारे रघुराई । नियति क्या सम्मुख ले आई ॥
राम के मन की राम ही जाने । करुं व्यथा ये कौन बखाने ॥ )

( दोषी मैं हूं सिया तुम्हारा । अंतरमन ने मोहे धिक्कारा ॥
ग्लानि करुण में परिवर्तित है । राम सिया का प्रेम अमिट है ॥ )

( समझो व्यथा मेरे व्याकुल मन की । मोल न कोई इन असुंअन की ॥
प्रेम कहे संग चलूं तिहारी । स्वाभिमान रोके मन मारी ॥ )

( प्रेम बिना जीवन लगे भारी । बिन सम्मान न जनकदुलारी ॥
त्याग सकूं न निज सम्माना । क्षमा करो मोहे भगवाना ॥ )

( राम विवश मुख सिया निहारें । क्षमा करो प्रिय दोष हमारे ॥
प्रकट करुं कैसे व्यथा मैं मन की । अंतिम रैन है अपने मिलन की ॥ )

( त्याग सिया का है रंग लाया । नर नारी का भेद हटाया ॥
नर नारी भय एक समाना । होये न अब स्त्री अपमाना ॥ )

( बीते समय चक्र की छाया । नियति दिखाये  अपनी माया ॥
माताएं सुख देख के सारी । देह त्याग गईं स्वर्ग के द्वारे ॥ )

( बीता समय वह अवसर आया । देखि राम सुत मन हर्षाया ॥
राजतिलक की की तैयारी । सुखी अवध के सब नर नारी ॥ )

( लव कुश का अभिषेक कराये । स्वर्ण-मुकुट निज हैं पहनाये ॥
अब रघुकुल के लव कुश राजा । धर्म-पू्र्वक करीहैं काजा ॥ )

( लक्ष्मण राम के प्राण समाना । पर आवश्यक धर्म निभाना ॥
ऐसी परीक्षा राम ने दीन्हि । त्याग लखन सब सिद्ध कर दीन्हि ॥ )

( शेषनाग लक्ष्मण अवतारा । आज सजल है सागर धारा ॥
चला अवध से राम का प्यारा। अंखियन से बहे अविरल धारा ॥ )

( आप हमारे पितु सम दाता । मोहे उऋण करो हे ताता ॥ )

( सबको धर्म सिखाने वाले । मर्यादा को निभाने वाले ॥
छोड़ें अवध को अवध के स्वामी । श्रीनारायण अन्तरयामी ॥ )

( मर्यादा पुरुषोत्तम बनकर । लीला मनोहर प्यारी रचकर ॥
राम से बनकर के श्रीरामा । चले अवधपति अपने धामा ॥

मानव रूप का अब विश्राम है । हरि का धाम तो परम धाम है ॥
करने लगें हैं महा-प्रस्थाना । हैं जगदीश्वर राम भगवाना ॥

अवध के जन के नेत्र सजल हैं । सिहर उठा ये सरयु-जल है ॥
हे विधना कुछ करो उपाई । रोक लो राम को अवध में आई ॥

सुत लव-कुश और गुरु वशिष्ठ । छलके प्रेम सुधा बन निष्ठा ॥
भाव-विभोर हैं सारे परिजन । राम वियोग में रोये क्षण-क्षण ॥

ऐसी छवि जगत में नाहिं । राम रंग जन अंग समाहि ॥
जीवन में जीवन की भाषा ‌। मानवता की तुम परिभाषा ॥

धर्म कर्म अवतार चले हैं । सबके पालनहार चले हैं ॥
काल चक्र की नियमित गती है ‌। स्वयं महाप्रभु की सहमति है ॥

नारायण से नर की लीला । नर से नारायण का चोला ॥
तू अनादि तेरो रुप अनंता । जय परमेश्वर जय भगवन्ता ॥ )

राजेन्द्र शाश्वत श्रीमते ।
जयत्रे जनार्दन सौम्य श्रीराम ॥
मंगल भवन अमंगल हारी ।
द्रबहु सुदसरथ अचर बिहारी ॥

________________________

Immerse Yourself in Melodious Bhajans / Aartis

Discover videos, songs and lyrics that connect to you spiritually

सीता राम सीता राम सीता राम कहिये Lyrics icon

सीता राम सीता राम सीता राम कहिये

सीता राम सीता राम सीताराम कहिये,जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये |मुख में हो राम नाम राम सेवा हाथ में,तू अकेला नाहिं प

रघुपति राघव राजाराम Lyrics icon

रघुपति राघव राजाराम

रघुपति राघव राजाराम,पतित पावन सीताराम |सीताराम सीताराम,भज प्यारे तू सीताराम |ईश्वर अल्लाह तेरो नाम,सब को सन्मति दे भगवान

पायो जी मैंने राम रतन धन पायो Lyrics icon

पायो जी मैंने राम रतन धन पायो

पायो जी मैंने राम रतन धन पायो |वस्तु अमोलिक दी मेरे सतगुरु |कृपा कर अपनायो ||जन्म जन्म की पूंजी पाई |जग में सबी खुमायो |

ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैंजनियां Lyrics icon

ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैंजनियां

ठुमक चलत रामचंद्र, बाजत पैंजनियां |किलकि किलकि उठत धाय, गिरत भूमि लटपटाय |धाय मात गोद लेत, दशरथ की रनियां ||अंचल रज अंग

अवधपूरी के बाल Lyrics icon

अवधपूरी के बाल

जिनू राज सवेरे मिलना सी, एक रात दे विच वो फ़कीर भया |अवधपूरी के बाला दी दस कौन बदल तकदीर गया ||वनवासी दा भेस बना के, राम

प्रेम मुदित मन से कहो राम राम राम Lyrics icon

प्रेम मुदित मन से कहो राम राम राम

प्रेम मुदित मन से कहो राम राम राम, राम राम राम, श्री राम राम राम |पाप कटें दुःख मिटें लेत राम नाम |भव समुद्र सुखद नाव एक

View All

Unveiling Connected Deities

Discover the Spiritual Tapestry of Related Deities

Harihara

Harihara

Harihara | Vishnu-Shiva, Avatar & Supreme God

Yama

Yama

Yama | Ruler of Dead, Judge of Souls & Lord of Dharma

Brihaspati

Brihaspati

Brihaspati | Guru, Vedic God & Teacher

Vamana

Vamana

Vamana | Vishnu Avatar, Dwarf Incarnation, Trivikrama

Lokapāla

Lokapāla

Lokapala | Definition & Facts

Ardhanarishvara

Ardhanarishvara

Ardhanarishvara | Androgynous Form, Shiva-Shakti & Hinduism

View All

Discover Sacred Temples

Embark on a Spiritual Journey Through Related Temples

Ramdev Pittardev Mandir

Ramdev Pittardev Mandir

Sirsa, Haryana

Manav Mandir

Manav Mandir

Mundra, Gujarat

Shree Randal Mataji mandir

Shree Randal Mataji mandir

Ghogha, Gujarat

Temple

Temple

Khodsama, Uttar Pradesh

पलट बाबा मंदिर

पलट बाबा मंदिर

Ballia, Uttar Pradesh

Shri Sukhna Laxmi Narayan Mandir

Shri Sukhna Laxmi Narayan Mandir

Zirakpur, Punjab

View All
Searches leading to this page
सिया के राम संपुर्ण चौपाई bhajan | सिया के राम संपुर्ण चौपाई bhajan in Hindi | सिया के राम संपुर्ण चौपाई devotional song | सिया के राम संपुर्ण चौपाई bhajan lyrics | सिया के राम संपुर्ण चौपाई bhajan youtube | सिया के राम संपुर्ण चौपाई bhajan online | सिया के राम संपुर्ण चौपाई religious song | सिया के राम संपुर्ण चौपाई bhajan for meditation
Other related searches
सीता राम सीता राम सीता राम कहिये bhajan | रघुपति राघव राजाराम bhajan for meditation | रघुपति राघव राजाराम bhajan youtube | सीता राम सीता राम सीता राम कहिये religious song | सीता राम सीता राम सीता राम कहिये bhajan lyrics | सीता राम सीता राम सीता राम कहिये bhajan in Hindi | सीता राम सीता राम सीता राम कहिये bhajan youtube | पायो जी मैंने राम रतन धन पायो devotional song | पायो जी मैंने राम रतन धन पायो bhajan | पायो जी मैंने राम रतन धन पायो bhajan lyrics | रघुपति राघव राजाराम bhajan | सीता राम सीता राम सीता राम कहिये bhajan online | सीता राम सीता राम सीता राम कहिये devotional song | पायो जी मैंने राम रतन धन पायो religious song | पायो जी मैंने राम रतन धन पायो bhajan for meditation | रघुपति राघव राजाराम bhajan in Hindi | रघुपति राघव राजाराम bhajan lyrics | रघुपति राघव राजाराम bhajan online | पायो जी मैंने राम रतन धन पायो bhajan in Hindi | सीता राम सीता राम सीता राम कहिये bhajan for meditation | पायो जी मैंने राम रतन धन पायो bhajan online | रघुपति राघव राजाराम devotional song | पायो जी मैंने राम रतन धन पायो bhajan youtube | रघुपति राघव राजाराम religious song
Similar Bhajans
सीता राम सीता राम सीता राम कहियेरघुपति राघव राजारामपायो जी मैंने राम रतन धन पायोठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैंजनियांअवधपूरी के बालप्रेम मुदित मन से कहो राम राम राम